अनमोल वचन
❀कर्म❀
कर्म क्या है ? मानव जीवन में कर्म का क्या महत्व है ?कर्म से क्या
पाया जा सकता है ?कर्म कैसे हो ? अकर्मी की क्या गति होती है और कर्म सिल की क्या गति होती है ? महान विचारको की
द्रिस्थी में में कर्म –
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कर्मण्येवाधिकारस्ते
माँ फलेषु कदाचन !
माँ कर्मफ्ल्हेतुभुर्म ते सग्ड़ोअस्र्त्व कर्मणी
!! (भगवान श्री कृष्ण गीता 2-47 )
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इस संसार में कोई
मनुष्य स्वभावत किसी के लिए उदार,प्रिय या दुष्ट नहीं होता! अपने कर्म हि मनुष्य
को संसार में गौरव अथवा पतन की ओर ले जाते है (नरायण प. )
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कर्म करना बहुत
अच्छा है पर वह विचारो से आता है !इसलिए अपने मस्तिक्स को उच्च विचारो एव उच्चतम
आदर्शो से भर लो उन्हें रात दिन अपने सामने रखो उन्ही में से महान कर्मो का जन्म
होगा ! (म्हारिशी अरविन्द )
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केवल वाही वेक्ति सब
की उपेक्षा उत्तम रूप से करता है जो पूर्ण तह निस्वार्थी है ,जिसे ना धन की लालसा
है,ना कृति की और न किसी वास्तु की (स्वामी विवेकान्द )
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जो निष्कर्म के रह
पर चलता है उसे इसकी परवाह कब रहती है की किसने उसका अहित साधन किया है
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तुम जो भी कर्म
प्रेम और सेवा की भावना से करते हो ,वह तुम्हे परमात्मा की ओर ले जाता है जिस कर्म
में घिर्ना छिपी होती है ,वह परमात्मा से दूर ले जाता है (सत्य साईं बाबा )
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कर्म का मूल्य उसके
बहरी रूप और बहरी फल में इतना नहीं है जितना की उसके द्वारा हमारे भीतर दिव्यता की
वृदि होने में है ! (अरविन्द )
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अविघा से संसार की
उद्त्पति होती है संसार से घिरा जिव विषयों में आसक्त रहता है विस्यसक्ती के कारण
कामना और कर्म का निरंतर दबाव बना रहता है कर्म शुभ और असुब दो प्रकार के हो सकते
है और सुभ और आसुब दोनों प्रकार का फल मिलता है (मणिरत्नमाला )
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कर्म योगी अपने लिए
कुछ करता हि नहीं अपने लिए कुछ भी नहीं चाहता और अपना कुछ मानता भी नहीं इसलिए
उसमे कामनाओ का नास सुगमता पूर्वक हो जाता है (स्वामी विस्वास जी )
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कर्म करने और उसका
फल पाने के बिच लम्बा समय लगता है,जिसकी प्रतीक्षा धैर्य पूर्वक करनी पड़ती है बिज
को पेड़ बनने में कुछ समय लगता है ! अखाड़े में दाखिल होने से कोई पहलवान नही बन
जाता विघालय में प्रवेश पाते हि कोई ज्ञानी नहि हो जाता कामयाबी धैर्य से मिलती है
,कर्म क्षेत्रा चाहे कोई भी हो (स्वर्ण सूत्र )
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जो वेक्ति छोटे छोटे
कर्मो को भी इमानदारी से करता है ,वाही बाणे कर्मो को भी इमानदारी से कर सकता है
(सैमुअल )
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कर्मठ इसलोक परलोक
का ध्यान कर कर्म नहीं करता वह तो बस क्रियारत रहता है ! (भरत मुनि )
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इस धरती पर कर्म
करते हुये सौ साल तक जीने की इच्छा रखो क्योकि कर्म करने वाला हि जीने के अधिकारी
है जो कर्मनिस्था छोड़कर भोग्वृति रखता है,वह मृत्यु का अधिकारी बनता है (वेद )
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कर्म वह आडना है जो
हमारा स्वरूप हमे दिखा देता है अत हमे कर्म का अहसानमंद होना चाहिए ! (विनोबा भावे
)
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कर्मशील लोग सायद हि
कभी उदास रहते हो कर्म सिलता और उदाशी दोनों साथ साथ नहीं रहती है ! (बोवी )
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काम को आरभ करो और
अगर काम सुरु कर दिया है तो उसे पूरा कर के हि छोड़ो (विनोवा भावे )
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कर्मशील वेक्ति के
लिए हवाए मधु बहती है,नदियों में मधु बहता है और ओस्धिया मधुमय हो जाती है
(श्रीग्वेद)
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कर्म हि मनुष्य के
जीवन को पवित्र और अहिसंक बनता है (विनोबा भावे )
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जो निष्कर्म रह पर
चलता है उसे उसकी परवाह कब रहती है की किसने उसका अहित साधन किया है ! (बकिम
चन्द्र )
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फलासक्ति छोड़ो और
कर्म करो आशा रहित होकर कर्म करो,निष्काम रहित होकर कर्म करो इहा गीता की वह ध्वनी
है जो बुलाई नही जा सकती !जो कर्म छोड़ता है वह गिरता है कर्म करते हुये भी जो उसका
फल छोड़ता है वह चड़ता है ! (महात्मा गाँधी )
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भविष्य चाहे कितना
भी सुन्दर हो विस्वास न करो जो कुछ करना है उसे अपने पर और इश्वर पर विश्वास रखकर
वर्तमान में करो (लग्फेलो )
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निष्काम कर्म इश्वर
को रिडी बना देता है और इश्वर उसे सुध सहित वापस करने के लिए बाध्य हो जाता है
!स्वामी रामथिर्थ )
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जैसे तेल समाप्त हो
जाने से दीपक बुझ जाता है ,उसी प्रकार कर्म के क्षीण हो जाने पर दैव नस्ट हो जाता
है (वेद ब्याश महा.)
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फल मनुष्य के कर्म
के अधीन है, बुद्धि कर्म के अनुसार आगे
बड़ने वाली है तथापि विद्वान् और महात्मा लोग अछि तरह विचार कर के हि कोई काम करते
है (चनिक्य )
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खेल में हम सदा
इमानदारी का पला पकड कर चलते है ,पर अपसोस है की कर्म में इस ओर ध्यान तक नही देते
(रस्किन )
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वाही कार्य सबसे
अच्छा है जिसमे बहुस्खिय्क लोगो को अधिक से अधिक आनद मिल सके (फ्रासीसी हचिसन )
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जैसे फूल और फल किसी
के प्रेणना के बिना हि अपने समय पर वृक्षों में लग जाते है उशी प्रकार पहले के
किये हुये कर्म भी अपने फल भोग के समय का उलघन नही करते ! (वेद ब्यास महा .)
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अभाग्य से हमारा
धन,नीचता से हमारा यश,मुशीबत से हमारा जोश ,रोग से हमारा स्वस्थ मुत्यु से हमारे
मित्र हमसे छीने जा सकते है किन्तु हमारे कर्म मृत्यु के बाद भी हमारा पीछा करेगे
! (कोल्टन)
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जहा देह है वह कर्म
तो है हि ,उससे कोई मुक्त नही है तथापि शारीर को प्रभुमंदिर बनाकर उसके द्वारा
मुक्ति प्राप्त करनी चाहिए ! (महात्मा गाधी )
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कर्म की परिसमाप्ति ज्ञान
में और कर्म का मूल भक्ति अथवा सम्पूर्ण आत्मा समर्पण में है (आर्विंद घोष )
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कर्म सदैव सुख ना ला
सके परन्तु कर्म के बिना सुख नही मिलता ! (डिजरायली )
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मनुष्य के कर्म हि
उसके विचारो के सबसे अछी व्याख्या है (लाक )
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कर्म हि पूजा है और
कर्तब्य –पालन भक्ति है ! (सत्य साईं बाबा )
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जीवन में किये हुये
कर्मो को परिवर्तित करने की पूर्ण असम्भाव्यता से अधिक दुःख माय और कुछ नही है (गाल्सवर्दी
)
❀त्याग❀
त्याग
किया है ?त्याग के क्या फल है ? किसका त्याग त्याग कहा गया है,किसे त्यागने से सुख
प्राप्त होता है? वेक्ति की खुशी का सबसे बड़ा रहस्य किया है ? आइए जाने !
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इच्छाओ का त्याग
करने वाले यात्रियों के गुण गाना उतना हि असंभव है,जितना संसार में अब तक मरे जीवो
की गिनती करना (श्री न्क्वार्ड )
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इन 6 का त्त्याग कभी
न करे-सत्य,दान,कर्म,क्षमा,धैर्य,और गुरु !(वेद ब्याश )
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त्याग और बलिदान
किये बिना यदि तुम ज्ञान प्राप्त करना चाहते हो तो उसका देवता तुम्हारे लिए द्वार
नही खोलेगा इस संसार में कूछ भी पाने के लिए उसका मूल्य चुकाना हि पड़ता है !(स्वेन
मार्डेन )
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त्याग के बिना किसी
स्वार्थ की प्राप्ति नही होती ! (रवीन्द्रनाथ ठाकुर )
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संसार में सबसे बड़ा अधिकार
सेवा और त्याग से प्राप्त होता है (प्रेम चाँद )
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कोई भी मनुष्य स्वेम
के लिए गुलाब नही उगाता आनद प्राप्ति के लिए सुन्दरता को दूसरो के साथ बाटने में
हि उसकी प्राप्ति में वृदि होती है
(चेस्टर चार्ल्स )
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ऊचाई में पहुचने के
पस्चात बादल बनकर भलाई के लिए बर्षो ! (नित्य नन्द स्वामी )
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अपना जीवन लेने के लिए
नही देने के लिए है !(विवेकान्द)
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जिस आदमी को त्याग
की भावना अपनी जाती से आगे नहीं बढती,वह स्वेम स्वार्थी होता है और अपनी जाती को
भी स्वार्थी बनता है!(महात्मा गाँधी )
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ख़ुशी का सबसे बठा
रहस्य त्याग है !एडयू कार्नेगी )
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छोटी वस्तुवो की
अपेक्षा बड़ी वस्तुओ का त्याग सरल है !(माल्टन )
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त्याग के अतोरिक्त और
कहा वास्तविक आनद मिल सकता है,त्याग के बिना न इश्वर प्रेरणा हो पाती है, न प्राथना ! (रामथिर्थ )
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त्याग के समान कोई
सुख नहीं है !(महाभारत )
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पूर्ण त्याग और
इश्वर में पूर्ण विश्वाश हि हर चामत्कार का रहस्य है (स्वामी राम क्रिस्ष्ण परमहस)
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ख़ुशी इस बात पर
निर्भर करती यही की आप क्या दे सकते है ,इस पर नही की आप क्या पा सकते हो
!(महात्मागाँधी )
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कर्म से,धन से अथवा
संतान से विद्वानों ने अंमृत रूपी मोक्ष नही प्राप्त किया है,किन्तु एक त्याग से
उसे प्राप्त किया है
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