अनमोल वचन =6 पार्ट

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                  प्रशंसा

प्रशंसा क्या है?कौन प्रशंसा का पात्र है?प्रशंसा किसकी ओर कैसे करनी चाहिए अपनी प्रशंसा सुनकर वेक्ति की किया प्रतिक्रिया होनी चाहिए

प्रशंसा के क्या हानि लाभ है आदि प्रशनो का सटीक विवेचन मनीषियों एवं विचारको के द्रिस्थी से !

·        जैसे चाँदी की परख कुठाली पर और सोने की परख भट्टी में होती है, वैसे हि मनुष्यों की परख लोगो के द्वारा की गई प्रसंसा से होती है ! (निति वचन )

·        प्रत्येक वेक्ति प्रशंसा चहाता है ! (लिकन )

·        एक बुद्धिमान पुरुष की प्रशंसा उसकी अनुपस्थिति में करनी चाहिए,किन्तु स्त्री की प्रसंसा उसके मुख पर ! (वेल्श लोकोक्ति )

·        प्रतीद्वनी द्वारा की गई प्रशंसा सर्वोतम कृति है ! (टामस मुर )

·        प्रसंसा के प्रति अनुराग पर हि सदैव किसी जाती का महान प्रयास आधारित रहा है,जैसे उसका पतन विलाशिता के प्रति अनुराग में रहा है !(रस्किन )

·        प्रसंसा अच्छे गुणों की छाया है,परन्तु जिन गुणों की वह  छाया है,उन्ही के अनुसार उसकी योगियता भी होती है ! (वेकन )

·        अपनी प्रशंसा सुनकर हम इतने मतवाले हो जाते है,की फिर हममे ! विवेक की शक्ति भी लुप्त हो जाती है! बड़े से बड़ा महात्मा भी अपनी प्रशंसा सुन कर फूल उठता है ! (प्रेमचढ़ )

·         मुझे किसी दुसरे वास्तु की इतनी आवश्यकता नही है, जितनी की आत्मापूजा की भूख के पोषण की ! (अज्ञात )

·        अपनी पुस्तको की प्रशंसा करने वाला लेखक अपने बचो की प्रशंसा करनी वाली माता के समान है ! (डिजरायली )

·        किसी की गुणों की प्रसंसा करने में अपना समय वेर्थ नष्ट न करो,उसके गुणों को अपनाने का प्रयत्न करो ! (कार्ल माक्स )

·        प्रशंसा प्राथना से अधिक द्विबिय है , प्राथना स्वेमं का तयार रास्ता हमे दिखाती है प्रशंसा वहा पहले से हि उपस्थित रहती है (यग )

·        स्वर्ण और हीरे के समान,प्रशंसा का मूल्य केवल उसके दुर्लभत्व में ही होता है ! (डॉ जानसन )

·        प्रशंसा आपके वेक्तित्व के मूल केंद्र पर चोट करती है,इससे आप जान सकते है की आपके सामने बैठे वेक्ति का मानसिक तथा आध्यात्मिक स्तर क्या है ! (स्वामी अमरमुनि )

·        प्रशंसा के वचन साहस बढाने में अचूक ओषधि का काम देते है ! (सुदरसन)

·        प्रशंसा अज्ञान की बेटी है !(फ्रैकलिन )

·        प्रसंसा से बचो,यह आपके वेक्तित्व की अछइयो को घुन की तरह चाट जाती है ! (चादिक्य )

·        प्रशंसा की मीठी अगनी यमराज के कठोर ह्रदय को भी मोम बना देदी है,तभी तो वह अपने भक्त को अमर होने का वर दे देता है,यह जानते हुये भी की इस संसार में कोई अमर नही ! (वेदांत तीर्थ )

·        प्रशंसा की भूक जिसे लग जाती है,वह कभी तृप्त नही होता ! वेदांत तीर्थ )

·        दुसरे की प्रशंसा करना बहुत कम लोग जानते है इसलिए जब भी कोई आपकी प्रशंसा करे तो यह जानने की कोसिस करे की सामने वाला आपसे आखिर चहाता क्या है ? (स्वामी विवेकान्द )

 

प्रसंशा खोजने वाले को वह नही मिलती (खलील जिब्रान )

·        जब भी मै अपने आतीत में झाककर देखता हू तो मुझे स्पष्ट दिखाई देता है की मुझे लोगो ने मेरी प्रशंसा करके ज्यादा ठगा है ! (के हैरी)

·        अयोग्य मनुष्य की प्रशंसा छिपे हुये व्यंग्य के समान होती है (ब्रांडहस्त)

·        आप प्रत्येक वेक्ति का चरित्र बता सकते है, यदि आप देखे की प्रशंसा से कैसे प्रभावित होता है (सेनेका )

·        सच्ची प्रशंसा आलोचक द्वारा की जाती है,क्योकि जहाँ वहा अपनी उगली नही रख पाता मानो वह उन-उन स्थानों द्वारा तुम्हारी मूक प्रशंसा करता है ! तीर्थ नन्द (अज्ञ)

·        प्रसंसा की तेज लहरों के बिच से उसे निकाल पाना आसन नही,जो आपको भुलावे में नही रखता,बल्कि आपका आत्मविश्वास को बढ़ता है ! (आचार्य म्रितुज्य )

·        अगर तुमने मेरी प्रसंसा कम की होती तो मै तुम्हारी अधिक करता ! (लूई)

·        जब कोई आदमी आप से नशिहत चाहता है,तो वास्तव में आपकी प्रशंसा चाहता है (चेस्टर फिल्ड )

·        प्रशंसा वह फुल है जो मृतक के नाम के साथ खिलता है !! (मदर व्हेल )

·        जो प्रशंसा के छड़ो में अपना होश बनाये रख सकता है,असल में वही साधक है ! (स्वामी रामथिर्थ )

·        प्रसंसा तो भाग्य से मिलती है,इमानदार आप स्वं बन सकते है ! (रुज्वेल्ड )

·        क्या तुम स्वेम अपनी प्रशंसा कर सकते हो? यदि हा तो फिर कोई कितनी भी तुम्हारी निंदा करे,तुम्हारा कुछ नही बिगाड़ सकता !(वेदंत्तिर्थ )

·        ध्वनियो में सबसे मधुर है प्रशंसा की ध्वनी ! ( जिनेफोन )

·        अत्यधिक प्रसंसा बहुत थोड़े समय रहने वाली भावना है,ज्यो की आपकी जानकारी उस वेक्ति से बढ़ाती है जिसकी आप प्रशंसा करते थे,तब तुरत हि उसकी प्रशंसा की कसोटी करने लगते है !  एडिसन

·        सची प्रशंसा करन शिखो,यह स्रेष्ट गुड है (तथागत )

·        प्रशंसा कर्तब्यपरायणता के लिए बाध्य करती है,चापलूसी कर्तव्यविमुखता कीज ओर ले जाती है ! ( मिल्टन )

·        प्रशंसा को वीरता के कार्यो की सुगंध हि समझिये ! सुकरात

·        प्रशंसा एक एसा जाल है जिसमे तेज रफ्तार परिंदा खुद आकर फस जाता है !( स्वामी अमरमुनि )

·        प्रशंसा विवेक को नम्र बनाती है,मुर्ख को अंहकारी और दुर्बल मन को मदहोश कर देती है !(फ़ैलथम )

·        प्रशंसा केवल भडकीले वस्त्रो में लिप्त हुआ असत्य है !(अज्ञात )

                                          


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